एपीजे अब्दुल कलाम जो नाव पे तीर्थ यात्रियों को रामेश्वरम मंदिर ले जाया करते थे और जब तक तीर्थयात्री रामेश्वरम मंदिर की परिक्रमा करते थे तब तक वे नाव में बैठ के फिजिक्स के सिद्धांत पढ़ा करते थे तो आईये आज इन्हीं डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में थोड़ा जान लेते हैं|
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम में हुआ उनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन था और उनकी माता का नाम अशिआना जैनुलाब्दीन था, इनके 10 भाई बहन थे, डॉ एपीजे अब्दुल कलाम में एपीजे का मतलब A मतलब अबुल उनके परदादा का नाम है P मतलब पाकिर उनके दादा का नाम है और J मतलब जैनुलाब्दीन उनके पिता का नाम है और एपीजे के पीछे अब्दुल कलाम का खुद का नाम है मतलब कि एपीजे अब्दुल कलाम का फुल फॉर्म है अबुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम अब्दुल कलाम हमारे देश के 11 वे राष्ट्रपति थे वह 2002 से 2007 तक राष्ट्रपति रहे थे।
4 बाते जो अब्दुल कलाम ने सफल होने के लिए कही थी।
एक बार किसी बच्चे ने अब्दुल कलाम से पूछा सफल होने का मंत्र क्या है तभी अब्दुल कलाम ने जवाब दिया अब्दुल कलाम बोले सफल होने के लिए सबसे पहली बात है एक जबरदस्त लक्ष्य निर्धारित कीजिए, दूसरा वह बोले जितना हो सके उतना ज्ञान अपने पास इकट्ठा कीजिये, तीसरा वह बोले ज्यादा से ज्यादा मुश्किल कार्य कीजिए जितना हो सके उतना डैम लगा दीजिये और चौथा वह बोले कुछ भी हो जाए हार नहीं माननी है, जीवन हमेशा ऐसे जियो कि जीवन खत्म होने के बाद भी लोग आपको हमेशा याद रखें, यही था अब्दुल कलाम का सफल होने का मंत्र।
अब्दुल कलाम के बचपन के दोस्त की कहानी।
अब्दुल कलाम वैसे तो मुसलमान थे लेकिन वह हर रोज रामेश्वरम मंदिर के सामने जाकर खड़े होते थे तभी इनके मुताबिक इन्हें कुछ अजीब सा लगता था क्योंकि वहां के लोग इन्हें अजीब सी नजर से देखते थे इनके मुताबिक उन लोगों को ऐसा लगता था कि एक मुसलमान लड़का मंदिर के सामने क्या कर रहा है,लेकिन सच्चाई यह थी कि अब्दुल कलाम को मंत्रों का पाठ सुनना बहुत अच्छा लगता था उसका एक भी शब्द इन्हे समज नहीं आता था लेकिन यह बहुत अच्छा लगता था और दूसरा कारन था इनका दोस्त रामनाथ शास्त्री जो की मुख्य पुरोहित का बेटा था शाम के समय वे अपने पिता के साथ बैठकर स्रोतों का पाठ करता था,और बीच-बीच में अब्दुल कलाम के सामने देख कर मुस्कुरा भी देता था स्कूल में अब्दुल कलाम और रामनाथ साथ में पहली बेंच पर बैठते थे,वे दोनों भाइयों जैसे थे बस फर्क इतना था कि अब्दुल कलाम मुसलमान थे और रामनाथ हिंदू था,जब अब्दुल कलाम पांचवी कक्षा में थे तब एक दिन उनके क्लास में एक नए शिक्षक आए जोकि दिखने में बहुत ही सख्त लग रहे थे उन्होंने अपने हाथ में लकड़ी ले और पूरे क्लास का चक्कर लगाया और फिर आखिर में वे अब्दुल कलाम के पास आए और बोले, "ए सफेद टोपी वाले तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई पुरोहित के बेटे के पास बैठने की,चलो उठो और फौरन आखरी बेंच पर जाकर बैठ जाओ"उस दिन अब्दुल कलाम को बहुत बुरा लगा वह रोते-रोते अपने सारे पुस्तकों को लेकर आखिरी बेंच पर जाकर बैठ गए,उस दिन अब्दुल कलाम जब घर पहुंचे तब उनका रोता हुआ चेहरा देखकर उनके पिताजी ने उनसे पूछा बेटा तुम रो रहे हो क्या हुआ मुझे पूरी बात बताओ तभी अब्दुल कलाम ने स्कूल में जो भी हुआ था वह सब कुछ बताया वाहा दूसरी और उनके दोस्त रामनाथ ने भी अपने पिताजी को सब कुछ बताया दूसरे दिन रामनाथ दौड़ते हुए अब्दुल कलाम के घर आए और उनसे कहा जल्दी चलो मेरे पिताजी ने तुम्हें घर बुलाया है तभी अब्दुल कलाम बहुत डर गए उन्हें लगा कि अब मुझे और ज्यादा डांट पड़ेगी रामनाथ के घर पहुंच कर उनके शिक्षक को देखकर वे और भी ज्यादा डर गये लेकिन तभी रामनाथ के पिताजी ने उनके शिक्षक से गुस्से में कहा स्कूल में जो कुछ भी हुआ उसके लिए तुम अब्दुल कलाम से माफी मांगो अब्दुल कलाम को तो विश्वास नहीं हो रहा था की अध्यापक कि पुरोहित जी खुद उनके शिक्षक से मुझ से माफी मांगने के लिए कह रहे थे उनके शिक्षक ने तुरंत अब्दुल कलाम से माफी मांगी और दूसरे दिन से अब्दुल कलाम और रामनाथ दोनों फिर से पहले बेंच पर बैठकर पढ़ने लगे और हमेशा के लिए उनकी दोस्ती बरकरार रही।
अब्दुल कलाम ने अपनी पढाई कैसे पूरी की।
अब्दुल कलाम देश के लिए बचपन से ही कुछ करना चाहते थे लेकिन कुछ करने के लिए एक अच्छे से स्कूल में पढ़ना जरूरी था और वे अपने मां-बाप से कह नहीं पाते थे कि मुझे एक अच्छे से स्कूल में पढ़ना है क्योंकि वह अपने घर की परिस्थिति जानते थे और उन्हें पता था कि मैं एक अच्छे से स्कूल में नहीं पढ़ पाऊंगा लेकिन एक दिन अब्दुल कलाम के पिताजी खुद उनके पास आकर बोले बेटा मैं और तुम्हारी मां तो अनपढ़ है लेकिन मैंने और तुम्हारी मां ने तुम्हारे लिए बहुत अच्छे सपने देखे हैं हम तुम्हारी पढ़ाई के लिए कुछ भी करके पैसे जमा करेंगे और तुम्हें जरूर पढ़ाएंगे फिर रामेश्वरम से दूर समुंदर पार एक चहल पहल से बड़ा गांव था रामनाथपुर और उसमें एक स्कूल था द श्वातर्ज स्कूल उनकी भाई उन्हें उस स्कूल में ले गए और दाखिला करवा दिया वह स्कूल बहुत अच्छा स्कूल था उस वक्त पंखे नहीं हुआ करते थे इसलिए मौसम जब गर्म होता था तब बच्चों को पेड़ों की छांव में बैठाकर पढ़ाया जाता था दूसरे विषय के क्लास में जाने का मतलब था दौड़ कर दूसरे पेड़ के नीचे जाकर बैठ जाना एक दिन अब्दुल कलाम जल्दी में दूसरी कक्षा में चले गए तभी वहां के शिक्षक उन्हें घुरकर अपने चश्मे में से देख रहे थे और बोले तुम सही क्लास नहीं ढूंढ सकते तो पढ़ाई कैसे करोगे तुम्हें तो अपने गांव वापस लौट जाना चाहिए और अब्दुल कलाम की गर्दन पकड़ी और पूरे क्लास के सामने उन्हें बहुत मारा उस दिन अब्दुल कलाम का दिल टूट गया उस दिन उन्होंने ठान लिया मैं एक बहुत अच्छा छात्र बनूंगा और अपने परिवार का नाम जरूर रोशन करूंगा उस साल उन्होंने बहुत मेहनत की दिन रात पड़े और जब उनका परीक्षा का परिणाम आया तब उन्हें गणित में 100 में से 100 मार्क्स मिले थे दूसरे दिन प्रार्थना के बाद जिस शिक्षक ने उन्हें मारा था वह खड़े हुए और बोले मैं जिसे भी मारता हूं वह महान बन जाता है तब सारे बच्चे हंसने लगे और फिर उन्होंने पूरी बात बताइ और मेरे सामने इशारा करते हुए बोले यह लड़का एक दिन बहुत आगे जाएगा और हमारे स्कूल का और हमारे शिक्षकों का मान बढाएगा जब वे 70 पूरा हुआ तब वे अपने घर वापस लौटे उनके घर वालों ने बहुत खुशियां मनाई उनकी माता ने अपने घर ही मिठाईया बनाई और उनके पिता ने पूरे गांव में मिठाइयां दी उस दिन उन्हें लगा कि मैं अभी किसी लायक हूं।
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